क़ुतुब मीनार का इतिहास- क्यों बनाया गया क़ुतुब मीनार ?2024
क़ुतुब मीनार भारत के दिल्ली शहर महरोली में स्थित एक फेमस ऐतिहासिक स्थल है। यह दुनिया का सबसे ऊँचा ब्रिक तख्ता है जो ईटो से बना है, और भारतीय संस्कृति और वास्तुकला के प्रतीक के रूप में अधिक प्रसिद्ध है। यह ताजमहल के साथ मिलकर, दिल्ली के द्वितीय सबसे अधिक देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है।यह मीनार 240 फीट की कुल ऊंचाई के साथ 14.3 फीट के चौड़ी गोलाकार आधार के साथ खड़ा है। इस मीनार को सबसे बहेतरीन लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनवाया गया है। क़ुतुब मीनार मे 5 मंजिलें हैं हर मंजिल पर एक गोलाकार बालकनी भी बनाई गई है मीनार के शीर्ष तक जाने के लिए इसमें 379 सीढ़ियां हे |
कुतुब मीनार का इतिहास:
कुतुब मीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने शुरू करवाया लेकिन वो इसे पूरा नहीं करवा सके। बाद में इल्तुतमिश ने इसे पूरा करवाया। इस मीनार मे आग लगने के कारण मीनार क्षतिग्रस्त हो गया तब उस का पुननिर्माण फ़िरोज़ शाह तुगलक कै द्वारा 1386 मे किया गया |इस के बाद सिकंदर लोदी ने भी इस की मरम्मत करवाई |अलाउद्दीन खिलजी ने भी इसमें निर्माण कार्य करवाया और इसका मुख्य प्रवेशद्वार अलाई दरवाजा 1311 ई. में बनकर पूरा हुआ।
कुतुबुद्दीन ऐबक पृथ्वीराज चौहान को हराने वाले मोहम्मद गोरी का पसंदीदा गुलाम और सेनापति था। गोरी ऐबक को दिल्ली और अजमेर का शासन सौंपकर वापस लौट गया था। 1206 में गोरी की मौत के बाद ऐबक आजाद शासक बन गया और उसने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की।
कुतुबुद्दीन ऐबक गौरी राजवंश से था|इस राजवंश को शनसबानी के नाम से भी जाना जाता है|यह एक ताजिक कबीला था जो मध्य एशिया के रहने वाले थे,जो अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र घूर से आऐ थे, और इरानी भाषा बोलते थे| यह लोग भारत में इस्लाम लेकर आऐ और यही बस गऐ| फिर उन्होंने भारत में विस्तार कियाऔर जल्द ही देश के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा जमा लिया।
दिल्ली के सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक अफगानिस्तान में स्थित जाम की मीनार से प्रभावित थे और वे उससे भी बड़ी मीनार बनाना चाहते हैं जिसके कारण उन्होंने कुतुब मीनार काम शुरू करवाया। कुतुब मीनार के नाम पर भी अलग -अलग मतभेद है। कुछ इतिहासकारों के कहना है की यह नाम दिल्ली सल्तनत के संथापक कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर रखा गया है,तो कुछ का कहना है इसका नाम प्रसिद्ध सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया है इस के अलावा यह भी लोगो का मन्ना है के पुराने राजवंश को हरा कर नए राजवंश ने अपनी जीत के सम्मान मे कुतुब मीनार का निर्माण किया गया |
कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा इसका निर्माण सन् 1193 ई. में करवाया गया जो अल्तमश के पुत्र इक्बाल के द्वारा सम्पन्न हुआ। यह तख्ता सैकड़ों साल पुराना है और उस समय के साथ अपनी महत्वपूर्ण स्थानीयता को बढ़ावा देता आया है। इस एतिहासिक स्मारक ने कई प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना किया है मीनार की ऊपरी मंजिल पर 1369 ई . मे बिजली गिरी थी मीनार को बोहोत नुकसान हुआ था फिर 1505 में भूकंप ने इस मीनार को क्षतिग्रस्त कर दिया फिर 1803 में एक शक्तिशाली भूकंप ने इस मीनार को दोबारा गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया | 1814 में इस के भूकंप प्रभावित हिस्से का अंग्रेज रॉबर्ट स्मिथ द्वारा पुननिर्माण कराया गया |
क़ुतुब मीनार की ऊँचाई लगभग 73 मीटर (238 फीट) है और इसका निर्माण लाल और सफेद संगमरमर, और रेतीले पत्थर के उपयोग से किया गया है। इसका शिखर मंगलोर से लाया गया था। यह ऐतिहासिक मीनार भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में माना जाता है और इसे 1993 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृति दी गई।
कुतुबुद्दीन ऐबक के जीवनकाल में मीनार की केवल पहली मंजिल पूरी हुई थी। बाद की तीन मंजिल इल्तुतमिश द्वारा लाल बलुआ पत्थर का उपयोग करके 1220 ई में निर्माण को पूरा करवाया गया |हर साल 30 लाख लोग क़ुतुब मीनार देखने आते है|और इस की देख रेख क़ुतुब मिनार परिसर आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के हाथ मे है |
कुतुबमीनार का निर्माण विवादपूर्ण है कुछ मानते है कि इसे विजय की मीनार के रूप में भारत में मुस्लिम शासन की शुरूआत के रूप में इस को बनवाया गया| कुछ मानते है कि इसका निर्माण मुअज्जिन के लिए अजान देने के लिए किया गया है।वजह चाहे जो भी हो पर इस बात पर सब एकमत है, की यह भारत का बेहतरीन स्मारक है जो पूरी दुनिया में सिर्फ भारत के पास है|
क़ुतुब परिसर के भीतर कई अन्य महत्वपूर्ण स्मारक भी स्थित हैं |
लोह स्तम्भ :
लोह स्तम्भ एक अद्भुत ऐतिहासिक स्मारक है, माना जाता है की यह स्तंभ तीसरी और चौथी शताब्दी के बिच गुप्त वंश के एक राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल के दौरान बनाया गया था। इस की लम्बाई 7 मीटर है इस को कीर्ति स्तम्भ भी कहा जाता है इस स्तंभ की सबसे आश्चर्य वाली बात यह है के कई सदियों पहले इस का निर्माण हुआ फिर भी इस लोहे के स्तम्भ को आज तक जंग नहीं लग पाया |
इल्तुतमिश का मकबरा :
इल्तुतमिश का मकबरा भी इसी परिसर मे मौजूद है इल्तुतमिश भारत में गुलाम वंश के पहले शासक कुतुब उद दीन ऐबक का दामाद था जो दिल्ली सल्तनत का दूसरा सुल्तान था।
अलाइ मीनार:
यह मीनार भी क़ुतुब मीनार परिसर मे ही मौजूद है अलाउद्दीन खिलजी की इच्छा थी के वह क़ुतुब मीनार से ऊँचा एक मीनार बनवाए इस परियोजना पर कार्य भी शुरू हुआ लेकिन अलाउद्दीन खिलजी की 1316 में मृत्यु होने के कारण उस की इच्छा और निर्माण दोनों ही अधूरे रह गये |
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद :
you may like : माउंट आबू की पूरी जानकारी
क़ुतुब मीनार पर इतिहास में कई दुर्घटनाएँ हुई हैं।
1.1803 में आऐ भूकंप में क़ुतुब मीनार को काफी नुकसान पहुँचा था और इसका पुनर्निर्माण किया गया।2.1976 में हुई एक दुर्घटना में मीनार की ऊपरी मंजिल पर कुछ क्षति हुई थी।
3.1946 में महाराजा जगतजीत सिंह की छठी पत्नी तारा देवी अपने दो कुत्तों के साथ टॉवर से गिरकर मर गईं।
4. 1976 से पहले, जनता को क़ुतुब मीनार के अन्दर जाने की इजाज़त थी लेकिन 2000 के बाद क़ुतुब मीनार के अन्दर जाना बंद कर दिया गया क्यों की लोग क़ुतुब मीनार के ऊपर चढ़ कर आत्महत्या करने लगे थे|
5.1981 दिसंबर 1981 में एक भयानक दुर्घटना हुई थी, सीढ़ी की रोशनी खराब ख़राब होने की वजह से भगदड़ मच गई और कई लोगो की जान चली गई मरने वाले ज्यादा टार स्कूल के बच्चे थे, इस घटना के बाद मीनार के अंदर प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
कुतुब मीनार घूमने का सबसे सही समय:
इस एतिहासिक जगह पर घुमने का सही समय अक्टूबर से मार्च के बिच है। वैसे तो आप कभी भी आ सकते है |
कुतुब मीनार कैसे पहंचे :
दिल्ली के महरौली क्षेत्र में क़ुतुब मीनार स्तिथ है। इस जगह के नजदीक मेट्रो स्टेशन भी है इस के अलावा बस ,ओटो ,या कैब द्वारा बड़ी आसानी से यहाँ पोहोच सकते है |
counclusion