Razia sultan – जिसे हुआ था अपने गुलाम से प्यार-क्यों गवानी पड़ी गद्दी 4 सालो में
13वीं सदी की महिला शासकों में से एक थी रजिया सुल्तान, जिन्होंने भारतीय इतिहास में एक अलग पहचान बनाई। उनका जन्म 1205 या 1206 में बदायु नाम के गांव में हुआ, था उनका पूरा शाही नाम “जलॉलात उद-दिन रज़ियॉ”था वह तुर्की सेल्जुक वंशज की थी। पिता का नाम शम्स- उद- दिन इल्तुतमिश और माता का नाम कुतुब बेगम था।
जब दिल्ली सल्तनत का शासन था।रजिया सुल्तान तीन भाइयों में इकलौती और सबसे काबिल थी। रजिया सुल्तान का बचपन में हफ्सा मोइन नाम रखा गया था लेकिन सब उन को रजिया ही बुलाते थे बचपन में ही पिता ने उन की काबिलियत को परख लिया था इस कारण उन्हें भी अपने बेटों की तरह ही सैन्य प्रशिक्षण दिया उनके पिता सुल्तान इल्तुतमिश, एक प्रभावशाली और महत्वपूर्ण शासक थे। रजिया को बहुत समृद्ध और विशेष रूप से प्रदान की गई शिक्षा मिली, जिससे वे कई भाषाओं, कला, विज्ञान और धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकीं।इस के अलावा उन के अन्दर एक कुशल प्रशासक बनने के सभी गुण थे |
रजिया के पिता इल्तुतमिश की मौत के बाद उन के बेटे को सुल्तान बनाया गया|जब की पिता की इच्छा के मुताबिक रजिया को सुल्तान बनना था लेकिन तुर्क अमीरो और रजिया की मा को यह पसंद नहीं था के एक लड़की दिल्ली की सुल्तान बने और रज़िया के बदले उस के नशेडी भाई फिरोजशाह को सुल्तान बना दिया गया|लेकिन अपनी अयोग्यता के कारण 6 महीने से ज्यादा शासन नहीं कर सका प्रजा इस के शासनकाल में बोहोत परेशान रहने लगी|
दिल्ली में सुल्तान की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर, रजिया न्याय की मांग का प्रतीक लाल वस्त्र पहनकर नमाज के अवसर पर वहां लोगों के सामने हाज़िर हुई। उसने शाहतुर्कान के अत्याचारों और राज्य में फैली अव्यवस्था का वर्णन करते हुए आश्वासन दिया कि वह शासक बनकर शांति और सुव्यवस्था लाएगी|
तुर्क अमीर और सामान्य जनता ने रजिया से प्रभावित होकर राज महल पर आक्रमण कर शाहतुर्कान को गिरफ्तार कर लिया उस की माँ शाह तुर्कान भी शासन पर नियंत्रण नहीं रख सकी, भ्रष्ट और बेवकूफ रक्नुद्दीन के खिलाफ जनता में इतना गुस्सा आया कि 9 नवंबर 1236 को रक्नुद्दीन और उसकी माता शाह तुर्कान की हत्या कर दी गई| मुसलमानों ने एक महिला को चुना सुल्तान बनाने क लिए और रजिया को सुल्तान घोषित कर दिया।और दिल्ली की शासिका रजिया सुल्तान बन गई।
1236 में उनका शासनकाल शुरू हुआ। यह दिल्ली सल्तनत की पहली महिला सुल्तान बनने के कारण उनके शासनकाल का महत्वपूर्ण और उदाहरणीय हिस्सा था. यह उनके शासन में एक नई दृष्टि का संकेत था। रजिया सुल्तान के शासनकाल में, उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक सुधार की कोशिश की। उनकी सरकार ने प्रशासन को बदल दिया, न्यायपालिका को सुधार दिया और समाज में समानता की दिशा में कई काम किए। उन्होंने नगरीकरण की प्रक्रिया को मजबूत किया, जिससे व्यापार, विज्ञान और कला के क्षेत्रों का विकास सुधर गया।
रजिया का नाम भारत की प्रथम महिला शासक के तौर पर दर्ज है। दिल्ली सल्तनत के दौर में जब बेगमों को सिर्फ महलो के अंदर आराम के लिए रखा जाता था रजिया सुल्तान (1205-1240) भारत की पहली महिला शासक थी। दिल्ली सल्तनत के काल में, रजिया सुल्तान ने महल से बाहर निकलकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और शासन की बागडोर संभाली।
रजिया सुल्तान के शासनकाल में कई सफलताएँ हुईं, लेकिन उनके पास भी कई विरोधी थे। उन्हें अपने मजबूत शासन में संघर्ष करना पड़ा क्योंकि पुरानी विचारधाराओं के अनुयायियों ने उनके शासन के खिलाफ विरोध प्रकट किया।उन के खिलाफ होने वाले षड्यंत्र की वजह से उनका शासनकाल समाप्त हो गया, लेकिन महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण है। उनकी कहानी महिलाओं को प्रेरित करती है कि वे अपनी सरकार बनाने और समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए क्या कर सकती हैं।
1236 से 1240 ई. तक रजिया ने दिल्ली सल्तनत पर राज किया। राजदरबार में रजिया पुरूषों की तरह खुले मुंह जाती थी। तुर्की मूल की रज़िया को, अन्य मुस्लिम राजकुमारियों की तरह, सेना और प्रशासन में काम करना सिखाया गया, ताकि वह जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर सकती थी। रजिया को अपने भाइयों और बड़े तुर्क अमीरों से लड़ना पड़ा। उसने सिर्फ तीन वर्ष ही शासन किया |
रजिया अपने पिता के शासनकाल से ही शासन में रुचि रखती थी। रज़िया ने गद्दी संभालने के बाद पुरुषों की तरह सैनिकों का कोट और पगडी पहनना पसंद किया। बल्कि, बाद में वह बिना नकाब पहने युद्ध में भागी। रजिया ने पर्दा धारण करना छोड़ दिया और पुरषों की तरह चोगा (कुर्ता), और टोपी पहनकर दरबार में खुले मुंह जाने लगी।
रजिया और गुलाम का प्रेम
राजिया ने अपनी राजनीतिक समझदारी और नीतियों से सेना और आम लोगों का ध्यान रखा। वह दिल्ली की सबसे बड़ी राजकुमारी बन गईं। रजिया सुल्तान का उनके गुलाम जमालुद्धीन याकूत के साथ प्रेम भी इतिहास में दर्ज है एक तरफ इन के प्रेम सम्बन्ध से मुस्लिम समाज नाराज़ था तो दूसरी तरफ भटिंडा के गवर्नर इख्तिअर अल्तुनिया भी रजिया सुल्तान की खूबसूरती के कायल थे और दिल्ली पर कब्जा करना चाहता था ।
मुसलमान भी राजिया और उसके सलाहकार जमात-उद-दिन-याकुत हब्शी के साथ विकसित हो रहे प्रेम संबंध को पसंद नहीं करते थे। रजिया ने उन की इस नाराज़गी पर बहुत ध्यान नहीं दिया। लेकिन उसका इस संबंध के परिणाम को कम मूल्यांकन करना राज्य के लिए खतरनाक साबित हुआ |
रज़िया और याकुत एक दूसरे के प्रेमी थे, कुछ स्रोतों के अनुसार माना गया | कि वे दोनों करीबी दोस्त या विश्वास पात्र थे। हब्शी याकूब तुर्क नहीं था इस लिए तुर्की समाज को यह सम्बन्ध पसंद नहीं था और रज़िया ने उसे अश्वशाला का अधिकारी भी नियुक्त किया था,। रज़िया का अधिपत्य नामंजूर होने पर भटिंडा के राज्यपाल मल्लिक इख्तियार-उद-दिन-अल्तुनिया ने अन्य राज्यपालों के साथ विद्रोह कर दिया।
रज़िया और अल्तुनिया के बीच हुए युद्ध में याकुत की मृत्यु हो गई ,और रज़िया जेल में चली गई रजिया को यह डर था के उस का क़त्ल किया जा सकता हे इस लिए उस ने अल्तुनिया से शादी कर ली जो की पहले से ही रजिया की सुन्दरता का कायल था, रज़िया के भाई मैज़ुद्दीन बेहराम शाह ने इस बात का फाएदा उठाते हुए सिंहासन हासिल कर लिया।
रज़िया और उसके पति अल्तुनिया ने बेहराम शाह से युद्ध किया, लेकिन हार गए। और उन्हें दिल्ली छोड़कर भागना पड़ा और अगले दिन कैथल पहुंचे, जहां उनके साथ उनकी सेना चली गई। 14 अक्टूबर 1240 को दोनों वहाँ डाकुओं द्वारा मारे गए। बेहराम को भी गद्दी से हटना पड़ा उस की अयोग्यता के कारण |
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इल्तुतमिश का मकबरा
इल्तुतमिश कुबुद्दीन ऐबक का गुलाम था जो बाद में उस का दामाद बना| यह शम्शी वंश {गुलाम वंश } का एक प्रमुख शासक था। इस के कार्यकाल में दिल्ली सल्तनत की नींव मजबूत हुई। कुतुबुद्दीन ऐबक की बेटी क़ुतुब बेगम {तुर्कान } से शादी के कारण इल्तुतमिश गुलाम से दामाद और एक कुशल शासक बना इल्तुतमिश के 3 बेटे और एक बेटी थी मरने से पहले खुद इल्तुतमिश ने अपना मकबरा बनवाया था|
इल्तुतमिश पहला शासक था, जिसने एक महिला को अपना उत्तराधिकारी बनाया। स्रोतों के अनुसार, उसके बड़े बेटे को पहले उत्तराधिकारी बनाया गया था, लेकिन दुर्भाग्यवश वह अल्प आयु में मर गया। लेकिन मुस्लिम समाज को इल्तुतमिश की बेटी को राजसिंहासन पर वारिस बनाना पसंद नहीं था, इसलिए उसके छोटे बेटे रक्नुद्दीन फ़िरोज़ शाह को राजसिंहासन पर बैठाया गया।
रजिया की कब्र पर विवाद
दिल्ली की एकमात्र मुस्लिम-तुर्की शासक रजिया सुल्तान और उसके प्रेमी याकूत की कब्र का दावा तीन अलग -अलग स्थानों पर किया जाता है। इतिहासकार रजिया की मजार पर सहमत नहीं हैं। यह बताना आज तक मुश्किल है, की किस जगह की कब्र असली है ,कैथल और टोंक ने रजिया सुल्ताना की मजार पर अपना दावा जताया है।
तीसरी कब्र पुरानी दिल्ली में बताई जाती है, लेकिन अभी तक वास्तविक मजार का निर्णय नहीं लिया गया है। ,रजिया की मजार के दावों में अब तक ये तीन ही सबसे बलिष्ठ हैं। इन सभी स्थानों पर स्थित मजारों पर अरबी फारसी में रजिया सुल्तान लिखे होने के संकेत मिले हैं, लेकिन इसके बारे में स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं।
रजिया की कब्र को लेकर स्पस्ट आज तक नहीं हो पाया राजस्थान के टोंक में रजिया सुल्तान और उसके इथियोपियाई गुलाम याकूत की मजार के कुछ स्पष्ट प्रमाण हैं। पुराने कबिस्तान के पास एक बड़ी मजार पर फारसी में लिखा है “सल्तने हिंद रजियाह”। पास ही एक छोटी मजार भी है, जो शायद याकूत की मजार हो। इसे सुल्ताना की मजार कहा जाता है क्योंकि यह भव्य और विशाल है। स्थानीय इतिहासकार कहते हैं कि रजिया और उस के भाई बहराम से युद्ध के दोरान रजिया की मौत हुई यह सब एक महीने के भीतर हुआ|
इस एक महीने को इतिहासकार ठीक से नहीं बता पाए और जंग के तुरंत बाद उसकी मौत मान ली गई। इसके बावजूद, यह भी माना जाता है के । याकूत ने जंग में हार मानते हुए रजिया को लेकर राजपूताना की तरफ जाना पसंद किया । उस दोरान सेना ने भी साथ छोड़ दिया था | याकूत रजिया को बचाना चाहता था, लेकिन उसे राजेस्थान टोंक में घेर लिया और यहीं मार दिया गया। ऐसा अनुमान लगाया जाता है|
रजिया की कब्र का दावा दिल्ली के नई सड़क इलाके में सीताराम चौक पर बनी एक प्राचीन कब्र पर भी किया जाता है माना जाता है की यह रजिया की कब्र है|इस जगह तक पोहोचने के लिए पुरानी दिल्ली की तंग गलिया पार करनी पड़ती है, जहा कब्र बनी है,वहा पोहोचने पर आप को 2 कब्र दिखाई देगी वहां के लोग बता ते है के एक कब्र रज़िया की और दूसरी उस की बेहेन शाजिया की होगी ऐसा अनुमान लगाया जाता है|
जिस कब्र को रजिया की बताई जाती है उस में दो सुराख़ {होल } हो ने के बावजूद पुरातत्व विभाग के लोग इस पर ध्यान नहीं दे रहे, और न ही दुसरे लोगो को मरम्मत की अनुमति दे रहे है, इस जगह पर विकास के नाम पर सिर्फ फाइबर शेड और दो स्ट्रीट लाइट लगाई है|शेड को पक्का भी नहीं बनवाया, विदेशी टूरिस्ट इस जगह को देखने आते रहते है इस के बावजूद इस जगह पर कोई काम नहीं किया गया,
वहां के स्थानीय लोगों नें खुद से ही वह बोहोत सा ज़रूरी सामान रखा है| जैसे एक एक्जॉस्ट फैन, पानी की दो टंकियां,दो ट्युब लाइट,तीन सी.एफ.एल बल्ब, दो कूलर,चार सिलिंग फैन,एक स्टैंड फैन, और एक जग जिस में पिने का पानी रखते है| इस जगह पर के सालो से नमाज़ अदा की जा रही है और कुछ सालो से नमाजियों की संख्या में बढ़ोतरी भी हुई है|
conclution
रज़िया सुल्तान भारतीय इतिहास की एक अद्वितीय और प्रेरणादायक महिला शासक थीं। अपने संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली शासनकाल के दौरान, उन्होंने न केवल प्रशासनिक सुधार लागू किए बल्कि लैंगिक समानता की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए। रज़िया की नेतृत्व क्षमता, साहस, और न्यायप्रियता ने उन्हें समय की सीमाओं से परे एक आदर्श और प्रेरणा का स्रोत बना दिया। उनके शासन ने यह सिद्ध कर दिया कि नेतृत्व और योग्यता किसी भी लैंगिक सीमा से परे होते हैं। रज़िया सुल्तान की विरासत आज भी हमें समानता, साहस, और न्याय के मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है।