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अजमेर दरगाह: आस्था और शांति का पवित्र केंद्र 2024

अजमेर दरगाह

अजमेर दरगाहआज हम बोहोत ही खास जानकारी लेके आये है आप के लिए अजमेर दरगाह की तो चलिए जानते है इस दरगाह के बारे में बोहोत कुछ खास तो चलिए इतिहास के कईसो साल पुराने सफ़र पर |

अजमेर दरगाह भारत के राजस्थान राज्य में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जो सूफ़ी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती को समर्पित है। यह दरगाह हिंदू-मुस्लिम सामंजस्य और भाईचारे के प्रतीक के रूप में विख्यात है और सैकड़ों श्रद्धालु यहां आते हैं।

अजमेर दरगाह का इतिहास:

अजमेर दरगाह का नाम मुग़ल सम्राट अकबर के समय के मशहूर सूफ़ी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के नाम पर रखा गया है। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती, जिन्हें गरीब नवाज़ (Gharib Nawaz) के नाम से भी जाना जाता है, इस्लामी सुफ़ी संत थे और उनके शिष्यों द्वारा प्रचारित धरोहरों के साथ विशेष मान्यता रखे जाते हैं। उनके समय में भारत के समाज में सामाजिक और धार्मिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए उनके द्वारा स्थापित तत्वों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

अजमेर दरगाह का नीर्माण इल्तुतमिश ने प्रारंभ करवाया था लेकिन हुमायु के समय मे इस का काम पूरा हुआ | सुल्तान महमूद ख़िल्जी ने दरगाह का काम और आगे बढाया और बुलंद दरवाजा का निर्माण किया  उस के बाद शाहजह ने शाहजहानी दरवाजे का निर्माण कर वाया,  1911 में हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान ने अजमेर का मुख्य दरवाजा बनवाया जो निजामी गेट कहलाता है| बुलंद दरवाजे पर  उर्श का झंडा हर साल चढ़ा कर समारोह शुरू किया जाता है |और इस उर्श का उद्घाटन भीलवाडा का गौरी परिवार करता है |

ऐसा माना जाता है के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिस्ती फारस से हिंदुस्तान आये थे |आकर गरीबो और बेसहारा लोगो की मदद करने मे अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया |यहाँ आकार उन होने कई चमत्कार किये इस कारण आस – पास के लोगों में उनके प्रति रूचि जागने लगी और लोग अपनी परेशानियों का हल ढूंढने के लिए उन तक पोहोचने लगे

1893 की अजमेर दरगाह की तस्वीर मुगल बादशाह  ने  भी उनकी शिक्षाओं व उनके प्रसार को सुना और ओलाद की खवाहिश लेकर 437 km दूर पैदल चलकर इस दरगाह पर आये थे उस के बाद अकबर के घर जहागीर क जन्म हुआ था|

हज़रात मोईनुद्दीन चिस्ती का जन्म 11 41-42 ई  में ईरान के सिजिस्तान में हुआ,और 1236 मे उन की मृत्यु हुई |तभी से लोगो की आस्था यहाँ से जुड़ गई लोगो का मानना हे के इस जगह पर दैवीय शक्ति हे |और लोग यहाँ अपनी मन्नत मुराद लेकर आने लगे और श्रद्धालुओ का मानना है के उन की मन्नत पूरी भी होती है |

अजमेर दरगाह का निर्माण 13वीं सदी में हुआ था और यह निरंतर विकास के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बना रहा है। इसकी वास्तुकला में मुग़ल और राजपूत स्थापत्य शैली का मिश्रण है, जो इसकी सुंदरता को और बढ़ाता है। यहां के इमारतें, चादरगाह, जामातखाना, लंगर, और बड़ी मस्जिद आकर्षक विशेषताएं हैं।

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धार्मिक महत्व:

अजमेर दरगाह हिंदू-मुस्लिम सामंजस्य और भाईचारे का प्रतीक है। यहां आने वाले लोग भारतीय धरोहर और संस्कृति को समझते हैं और एकदिवसीयता को सराहते हैं। धार्मिक विश्वास के साथ सैकड़ों श्रद्धालु यहां ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती को आदर देने आते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए दुआएं मांगते हैं।

अजमेर दरगाह का वातावरण शांति और मानसिक चिंता से मुक्ति की अनुभूति के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। यहां के आकर्षक मेले और उर्स (ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु तिथि) पर लाखों श्रद्धालु इकट्ठे होते हैं और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।

अजमेर दरगाह का उर्स :

एक कहानी के अनुसार ऐसा माना जाता है के जब खवाजा मोईनुद्दीन चिस्ती 114 साल के थे तब खुद को एक हफ्ते के लिए उन्होंने खुद को कमरे मे बंद कर लिया और ईश्वर की साधना मे लीं हो गये  इस के बाद वे जीवित बहार नहीं आये |उन के अनुयायी यो  ने उस आखरी हफ्ते को याद करने के लिए ही उर्श को मनाया था जो आज भी मनाया जाता है|

स्थान:

अजमेर शरीफ दरगाह अजमेर रेलवे स्टेशन से 2 km दूर है और सेन्ट्रल जेल साईं 500  मीटर दूर तारागढ़ की पहाड़ी पर स्थित है |

यात्रिक सुविधाएँ:

अजमेर दरगाह एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल होने के कारण, यहां की सुविधाएँ यात्रिकों के लिए अच्छी तरह से व्यवस्थित की जाती हैं। यहां कई धार्मिक संस्थान, होटल, और धरोहरों के खरीदारी के लिए विक्रेता उपलब्ध हैं। श्रद्धालु यात्रियों को आसानी से दरगाह तक पहुंचने के लिए सड़कों और मार्गों का भी अच्छा इंतजाम है।

अजमेर दरगाह की यात्रा भारतीय संस्कृति और धरोहरों का अद्भुत अनुभव प्रदान करती है और भाईचारे और समरसता के संदेश को साझा करती है। धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ, यह स्थान भारत के धार्मिक एकता और संयम को प्रकट करता है।

अजमेर दरगाह के करीब होटल :

मंसून पलेस होटल: यह होटल अजमेर दरगाह से करीब 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक लग्ज़री होटल है जो आरामदायक कमरों, व्यावसायिक सुविधाओं और रेस्टोरेंट की सुविधा प्रदान करता है।

दरगाह बाज़ार होटल: यह होटल भी दरगाह के पास स्थित है और यात्रिकों को बजट में रहने की सुविधा प्रदान करता है। यहां आरामदायक कमरे और आवश्यक सुविधाएं होती है

ख्वाजा जी इन होटल: यह भी अजमेर दरगाह के पास होटल है और यात्रिकों को आरामदायक रहने की सुविधा प्रदान करता है।
होटल मंसून नई: यह भी अजमेर दरगाह के नजदीक स्थित होटल है जो आरामदायक कमरों और व्यावसायिक सुविधाओं को प्रदान करता है।

इस के अलावा भी कई होटल आसानी से आप को मिल जाएगे |

निष्कर्ष

अजमेर दरगाह, राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित, सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार है। यह धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र है, जहाँ हर धर्म के लोग आस्था और शांति की तलाश में आते हैं। यहां की गंगा-जमुनी तहजीब, दरगाह की आध्यात्मिकता, और उर्स मेले का महत्व इसे सूफी परंपरा का प्रमुख स्थल बनाता है।

 

 

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